जलते है केवल पुतले, बढ़ते जा रहे रावण ?

प्रियंका सौरभ दशहरे पर रावण का दहन एक ट्रेंड बन गया है। लोग इससे सबक नहीं लेते। रावण दहन की संख्या बढ़ाने से किसी तरह का फायदा नहीं होगा। लोग इसे मनोरंजन का साधन केे तौर पर लेने लगे हैं। हमें अपने धार्मिक पुरानों से प्रेरणा लेनी चाहिए। रावण दहन के साथ दुर्गुणों को त्यागना […]

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फायदेमंद गरीबी: आज के समय में गरीब होना जरूरी नही गरीब दिखाई देना जरूर फायदेमंद है…

एक समय था जब स्वयं को गरीब बताना हीन भावना को जन्म देता था लेकिन अब स्वयं को गरीब दर्शाना फायदेमंद हो गया है…. स्वतंत्रता के बाद देश में जातिगत भेदभाव और गरीबी से उत्थान के लिए छात्रवृत्ति, अनुदान और विभिन्न योजनाओं इत्यादि के माध्यम से आर्थिक सहायता प्रदान […]

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हेमंत सोरेन की गिरफ्तार की गलती: कल्पना सोरेन नई नेता बनीं

शकील अख्तर हरियाणा और जम्मू कश्मीर के रिजल्ट से पहले भाजपा झारखंड को लुभा लेना चाहती है। 8 अक्टूबर को क्या होगा इसका शायद उसे अंदाजा है। इसलिए उसने पंचप्रण के नाम से झारखंड में घोषणाओं की बौछार कर दी। मजेदार बात यह है कि यह ऐसी घोषणाएं है जो वह पहले दूसरे राज्यों में […]

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बुजुर्गों का योगदान: बदलते दौर में ‘सिल्वर इकोनॉमी’

प्रियंका सौरभ भारत में बुढ़ापे को लेकर सामाजिक कलंक और बुजुर्गों पर निर्भरता की पारंपरिक धारणा, आत्मनिर्भर बुजुर्ग आबादी के विकास में बाधा डालती है। अक्सर सामाजिक मानदंड बुजुर्ग नागरिकों को सेवानिवृत्ति के बाद रोज़गार या स्वतंत्रता की तलाश करने से हतोत्साहित करते हैं। कई सरकारी कार्यक्रमों के बावजूद, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच […]

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चुनाव के समय खंडित न हो भाईचारे का भाव

प्रियंका सौरभ चुनाव में कुछ लोगों द्वारा इसे आपसी साख का प्रश्न बना लिया जाता है जो धीरे-धीरे जहर का रूप ले लेता है। बढ़ती प्रतिद्धंद्विता रिश्तों का क़त्ल करने लगती है। अगर कोई ऐसे समय साथ न दे तो मित्र भी दुश्मन लगने लग जाते है। मगर यह हमारी भूल है। कोई भी चुनाव […]

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आधुनिकता की दौड़ में खोता अपनापन……

भारत हमेशा से “वसुधैव कुटुम्बकम” के सिद्धांत पर विश्वास करने वाला देश रहा है। एक समय भारत ऐसा देश था जहां संयुक्त परिवार जीवन का अभिन्न हिस्सा हुआ करते थे। यह वही देश है जहां तीन-चार पीढ़ियां एक ही छत के नीचे रहा करती थी। हर उम्र के लोग एक दूसरे के साथ हंसी-खुशी के […]

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जलवायु परिवर्तन: दोस्ती चाहती हैं आक्रामक प्रजातियाँ

डॉ सत्यवान सौरभ आक्रामक प्रजातियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से किए गए कई प्रयास अप्रभावी और अत्यधिक समय की मांग करने वाले साबित हुए हैं। ये प्रजातियाँ अक्सर अपने पारिस्थितिकी तंत्र में गहराई से समा जाती हैं, जिससे उनका उन्मूलन मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के लिए, आक्रामक पौधों की प्रजातियों को खत्म करने […]

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‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ कराने से क्या बदलाव आएगा?

डॉ सत्यवान सौरभ एक राष्ट्र एक चुनाव के संभावित लाभों के बावजूद, आलोचकों ने लोकतांत्रिक भावना, स्थानीय चिंताओं पर राष्ट्रीय मुद्दों के प्रभुत्व तथा संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता के बारे में चिंता व्यक्त की है। एक राष्ट्र एक चुनाव भारत में विभिन्न राज्यों की अद्वितीय राजनीतिक गतिशीलता और क्षेत्रीय हितों को कमजोर कर सकता है, […]

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देर से सही आखिर एक देश एक चुनाव बिल को कैबिनेट में पास होना ऐतिहासिक कदम: पूरन डावर

देर से सही आखिर एक देश एक चुनाव बिल को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी अब लोकसभा व राजसभा से पास कराना है। यह बिल उतना ही महत्वपूर्ण है जितना जनसंख्या नियंत्रण और एक देश एक कानून। पूरे 5 वर्ष देश के किसी न किसी राज्य में चुनाव, आचार […]

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डॉ सत्यवान सौरभ

हिंदी दिवस विशेष: मातृभाषा हमें सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने से जोड़ती है

डॉ सत्यवान सौरभ मातृभाषा में पढाई वैचारिक समझ के आधार पर एक घरेलू प्रणाली के साथ सीखने और परीक्षा-आधारित शिक्षा की रट विधि को बदलने में मदद करेगा। जिसका उद्देश्य छात्र के अपनी भाषा में ज्ञानात्मक कौशल को सुधारना है, ताकि वह अन्य भाषाओँ के बोझ तले न दब सके और चाव से अपनी प्राथमिक […]

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