महान ओलंपियन कैप्टन रूप सिंह की जयंती पर विशेषः राम और लक्ष्मण की तुलना नहीं की जा सकती 

Exclusive उत्तर प्रदेश

दुनिया के महानतम हाकी खिलाड़ियों की सबसे विख्यात जोड़ी हाकी के जादूगर ध्यानचंद और उनके छोटे भाई रूपसिंह की है। आज उनकी जयंती पर हम सब खेल प्रेमी और देशवासी रूपसिंह को स्मरण करते हैं तो आसमान में चांद की उस 24 कलाओं के साथ उदित होते चांद के सिर्फ और सिर्फ रूप का ही वर्णन करते हैं, जो चांद की विशेषता है और चांद उस रूप से ही संसार में अपनी छटा बिखेरता है।  जब चांद आसमान में उदित होता है तो वह अपने मनमोहक रूप से ही सबको आकर्षित करता है । ठीक उसी प्रकार दुनिया के हाकी क्षितिज पर ध्यानचंद ने अपने रूप के साथ मिलकर अपनी हाकी कला की ऐसी छटा बिखेरी कि दुनिया में हाकी उनके खेल की रोशनी से जगमगा उठी।

रूप सिंह ने अपनी प्रारंभिक हाकी का जीवन अपने भाई ध्यानचंद को खेलते देख हीरोज मैदान झांसी से प्रारंभ किया । जैसे बड़े भाई ध्यानचंद हाकी खेलते वैसे ही मैदान के बाहर खड़े होकर रूप सिंह उस अभ्यास को दोहराते। ये सिलसिला चलते रहा और फिर उनकी लगन और हाकी के प्रति उनके समर्पण को देखकर ध्यानचंद ने उन्हें मैदान के भीतर खेलने के लिए बुला लिया। रूप सिंह हीरोज हाकी क्लब के नियमित खिलाड़ी के रूप में चुन लिए गए । आज  जब हम कैप्टन रूप सिंह को याद करते हैं तो हीरोज मैदान के इस वर्ष 100 वर्ष पूरे होने के स्वर्णिम पल और स्वर्णिम इतिहास को भी अपने आप जीवित कर देते हैं।बाद में चलकर रूप सिंह का चयन राष्ट्रीय हाकी प्रतियोगिता में सेंट्रल प्रोविनिसेस की टीम से हुआ। जहां उनके शानदार खेल से प्रभावित होकर चयनकर्ताओं ने रूप सिंह का चयन 1932 के ओलंपिक खेलों के लिए भारतीय ओलंपिक हाकी टीम के लिए कर लिया गया।
भारतीय हाकी टीम लॉस एंजिलिस ओलंपिक के लिए समुद्री मार्ग से जापान होते हुए अमेरिका पहुंची ।जहां 4 अगस्त 1932 को उसका पहला मुकाबला जापान से हुआ और भारत ने उस मुकाबले को 11 के मुकाबले 1 से एकतरफा जीत दर्ज करते हुए तहलका मचा दिया। इस मैच में रूप सिंह ने तीन गोल किए और फिर 11 अगस्त 1932 को भारत ने अपना आखिरी राउंड रॉबिन मैच दुनिया के महाशक्तिशाली देश अमेरिका के खिलाफ खेला और भारत ने 24 के मुकाबले 1 गोल से अमेरिका को रौंदते हुए भारत की झोली में दूसरा स्वर्ण पदक डाल दिया । इस मैच में रूप सिंह ने 10 गोल किए और ये दोनो कीर्तिमान 24 गोलों से ओलंपिक में जीत और किसी भी खिलाड़ी द्वारा ओलंपिक हाकी के एक मैच में 10 गोल करने का कीर्तिमान जो रूप सिंह ने स्थापित किया वह आज भी ओलंपिक इतिहास में अजेय और अविजित है।     इसी दौरान ध्यानचंद और कैप्टन रूप सिंह की मुलाकात हॉलीवुड के सबसे बड़े कलाकार चार्ली चैप्लिन से भी हुई । 1932 ओलंपिक की स्वर्णिम जीत के बाद 1935 में रूप सिंह ने ध्यानचंद की कप्तानी में न्यूजीलैंड,ऑस्ट्रेलिया का सफलतम दौरा  किया। जहां रूप सिंह ने 18 गोल दागकर अपने खेल कौशल की अनूठी मिसाल कायम कर दी। दादा ध्यानचंद ने रूप सिंह के गोल करने की क्षमता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मैं खुश हूं कि रूप सिंह ने इतनी बड़ी संख्या में गोल कर भारतीय हाकी टीम को मैचों में लगातार विजय दिलाते हुए भारतीय हाकी को नई ऊंचाई प्रदान की है*।
इसके बाद वह ऐतिहासिक 1936 का बर्लिन ओलंपिक है, जिसकी कहानी आज भी दुनिया में याद की जाती है और बार बार दोहराई जाती है । फाइनल मुकाबला जर्मनी से घरेलू मैदान घरेलू दर्शकों का शोर और तानाशाह हिटलर के जोश भर देने वाली उपस्थिति और एक रात पहले पानी गिर जाने से मैदान की परिस्थितियां भी भारतीय हाकी टीम के प्रतिकूल थीं। मैच शुरू होने के साथ ही जर्मन खिलाड़ी भारतीय खिलाड़ियों पर हावी हो गए और ऐसा लगने लगा कि यह मुकाबला कहीं जर्मनी न जीत जाए। दादा ध्यानचंद ने अपने जूते उतार दिए यह देख कैप्टन रूप सिंह ने भी अपने जूते उतार फेंके।  फिर क्या था दोनो भाई भारतीय टीम के खिलाड़ियों के साथ भूखे शेर की भांति जर्मनी पर टूट पड़े ।भारत की और से पहला गोल रूप सिंह ने दागा और फिर देखते ही देखते भारत ने सात और गोल करके जर्मनी को 8 के मुकाबले 1 गोल से परास्त करते हुए भारत के लिए तीसरा स्वर्ण पदक विजेता होने का गौरव हासिल कर लिया। हिटलर इस शर्मनाक पराजय को देखने के पूर्व ही मैदान छोड़ने पर मजबूर हो चुका था और संयोग देखिए जहां पहला गोल रूप सिंह ने किया वहीं आखिरी गोल मेजर ध्यानचंद ने किया। ऐसा लगता है कि दोनो भाईयो की इशारों इशारों में बातचीत हो गई हो और ध्यानचंद ने रूप सिंह से कहा हो कि *रूप जीत की शुरुआत की नींव तू रख और शानदार स्वर्णिम जीत का समापन अंतिम गोल करके मैं करता हूं। किसी ने हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की धर्मपत्नी श्रीमती जानकी देवी से पूछा था कि आप दोनो में किसे श्रेष्ठ मानेंगी तब उन्होंने सुंदर जबाव दिया था कि राम लक्ष्मण की तुलना नहीं की जा सकती। वास्तव में भारतीय हाकी की भाईयों की यह जोड़ी राम लक्ष्मण की ही जोड़ी है, जिसकी तुलना नहीं की जा सकती है। जैसे राम के प्राण लक्ष्मण में हैं, ठीक उसी प्रकार ध्यानचंद जी की हाकी में रूप सिंह जी की हाकी रचती बसती है ।ओलंपियन अशोक कुमार ने अपनी हाकी अपने पिता ध्यानचंद जी से नहीं बल्कि अपने चाचाजी रूप सिंह से सीखी और निखारी एवं देश का गौरव बढ़ाया।

दुनिया ने रूप सिंह को बहुत मान सम्मान दिया। 1972 म्युनिख ओलंपिक के दौरान उनके नाम से म्यूनिख शहर में सड़क का नाम रूप सिंह के नाम पर रखा गया। जिससे देश का सम्मान बढ़ा । जो देश वासियों के लिए गौरव का विषय है और इन पलों के गवाह स्वयं ओलंपियन अशोक कुमार बने, जो 1972 म्युनिख ओलंपिक में भारत की ओर से खेलने गए हुए थे। ठीक इसी प्रकार 2012 के लंदन ओलंपिक में यू ट्यूब स्टेशनों में तीन भारतीय हाकी खिलाड़ियों के हाकी के जादूगर ध्यानचंद ,महान हाकी खिलाड़ी काल्डियस के साथ रूप सिंह के नाम पर रखकर ओलंपिक कमेटी ने भारत को सम्मानित किया । लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि कैप्टन रूप सिंह को भारत सरकार और हाकी के चलाने वाले वह सम्मान नहीं दे पाए जिसके कैप्टन रूप सिंह हकदार हैं। मध्यप्रदेश में सरकार को रूप सिंह खेल अवार्ड की घोषणा करके कैप्टन रूप सिंह  स्मृति को स्थाई बनाने का कार्य करना चाहिए।कहते हैं रूप सिंह की मौत से हाकी के जादूगर ध्यानचंद बुरी तरह टूट गये थे और छोटे भाई रूप सिंह की मौत का जबर्दस्त सदमा ध्यानचंद जी को लगा और वे भी संसार मे उसके पश्चात ज्यादा दिन नहीं जी पाये।
आज महान हाकी खिलाड़ी रूप सिंह की जयंती पर हम उन्हें याद करें और हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद और कैप्टन रूप सिंह की इस चमकदार जोड़ी की यादों को ताजा करें जिनके खेल से भारत का नाम दुनिया में रोशन हुआ। हमेशा के लिए वे दोनो चांद और सितारे की भांति इस दुनिया में अजर अमर हैं।

हेमंत चंद्र दुबे बबलू बैतूल से

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