बेटा

Life Style उत्तर प्रदेश दिल्ली/ NCR

            सत्यकथा पर आधारित कहानी

शंभू जैसे हजारों-लाखों लोग हैं इस दुनियां में, जो एक बेटे की चाह में मालुम नहीं कितनी मन्नतें मांगते हैं। भगवान के दर पर सालों तक भटकते हैं। तब जाकर उनकी मन्नत पूरी होती भी है और नहीं भी होती है। बहुत से ऐसे हैं, जो लाख जतन करने के बाद ही बेटे के सुख से वंचित रह जाते हैं। ऐसे ही एक पात्र हैं मेरी कहानी के शंभू। जिन्होंने एक बेटे के चक्कर में सात बेटियां पैदा कीं। कई मंदिरों में , झाड़फूक करने वाले के पास गये। इसके पश्चात भगवान ने उनकी सुन ली। आठवीं संतान के रूप में बेटे का सुख उन्हें मिला। परिवार में बहुत खुशी हुई। काफी दिन तक घर में जश्न का माहौल रहा। प्रभु का शुक्रिया अदा करने शंभू अपनी पत्नी शीला के साथ मंदिरों में गये। खैर समय बीतता गया। उन्होंने अपने बेटे का लालन पालन बहुत ही शानशौकत के साथ किया। सातों बहनों को आदेश थे कि वे भाई से सिर्फ लाड़प्यार से बात करेंगी। उसके साथ सभी नरमी से पेश आएंगे। यही वर्षों तक चलता रहा। शंभू का बेटा पवन धीरे-धीरे बड़ा होता गया। पढ़ाई-लिखाई के साथ ही खेलकूद में भी ध्यान लगाया। सात बहनों के बीच अकेला होने के कारण खाने-पीने की चीजें उसे सबसे पहले दी जाती थीं। बहनों को बाद में। खैर समय बीतता गया। पवन अपने पिता के काम में हाथ बंटाने लगा। उसकी शादी भी हो गयी।

उधर शंभू बुजुर्ग होते गये। उन्होंने सोचा बेटा उनके काम को संभाल कर घर-परिवार को चलाने लगेगा। पता नहीं परिवार को कौन सा ग्रहण लगा। पवन अपने माता-पिता से अलग हो गया। यही नहीं पिता को अपने साथ रखने में ही आनाकानी करने लगा। हालत यह हो गयी कि पता शंभू जब बीमारी की हालत में अस्पताल में भर्ती हो गये। तब पवन ने उनके हालचाल लेना भी उचित नहीं समझा। उन दिनों बेटियां पिता की देखभाल करती रहीं। हालात यहां पहुंच गये कि रात में अपने बीमार पिता की देखभाल के लिये बेटियां ही बारी-बारी से अस्पताल में रुकने लगीं। तब शंभू और शीला की तो परेशान थे ही। उनकी बेटी भी काफी दुखी रहने लगीं। खैर अस्पताल में लंबा समय बिताने के बाद भी बेटे का दिल बिल्कुल नहीं पसीजा। प्रभु की कृपा से शंभू को कुछ आराम मिला। डाक्टरों ने उन्हें छुट्टी दे दी। अब पिता को एक बेटी ही अपने घर ले गयी। वहां पर वह पिता की देखभाल करती रही। इतने पर भी बेटे का दिल नहीं पसीजा। पिता की आत्मा फिर भी बेटे के लिये तड़पती रहीं। उनका दिल कह रहा था कि आखिर है तो मेरा ही लाल। एक दिन जरूर मुझे आकर देखेगा। यह सोचकर वे केवल अपने दिल को तसल्ली देते रहे। फिर उन्होंने कुछ समय और दिया। शायद बेटा उनकी देखभाल करने लगेगा। बेटा नहीं आया।
यहीं से कहानी में कुछ मोड़ आया। पिता की दिल बेटियों के लिये पसीजने लगा। उन्होंने घने शहर में स्थित करोड़ों रुपये कीमत की अपनी संपत्ति बेटियों के नाम कर दी। तब तो बेटा और भी कठोर ह्रदय वाला हो गया। पिता से जीते जी वह नहीं मिला। बेटे की शकल देखने को बाट जोहते-जोहते ही शंभू स्वर्ग सिधार गये। अब सामाजित समस्या आयी कि पिता का अंतिम संस्कार कौन करे। खैर किसी तरह नजदीकी लोगों ने पवन को समझाया। उसने किसी तरह पिता का अंतिम संस्कार किया। जिस पिता ने लाख मन्नतों के बाद बेटे के रूप में संतान का सुख भोगा। उसके लिये जीवन के अंतिम पड़ाव तक वे तड़पते रहे। वह अपने आखिरी दिनों में कहते रहे कि बेटियों ने फिर भी मेरा आखिरी समय में साथ दिया।
फिर एक और द्वंद शुरू हो गया। मकान शंभू ने बेटियों के नाम कर दिया था। इसलिये वे हकदार बन गयीं। उसी बीच शीला की भी मौत हो गयी। यहां से कहानी में फिर एक मौड़  गया। पवन कहने लगा मकान मेरा है। लेकिन उसके पिता सरकारी रिकार्ड में यह मकान बेटियों के नाम कर गये थे। इसलिये उन भाई बहनों में भी युद्ध होता रहा। कुल मिलाकर जिन मां-बाप ने बेटे के रूप संतान प्राप्ति के लिये जो लाख जतन किये थे कि बुढ़ापे में बेटा उनकी जिंदगी को आसान बनाएगा। वह नहीं हो पाया। पिताजी के दुनियां से चले जाने के बाद संपत्ति को लेकर एक नया विवाद और खड़ा हो गया।

कहानी का सार- कहानी का सार यह है कि हे इक्कीसवीं सदी में भले ही पहुंच गये हैं लेकिन बेटे के लिये लोग आज भी बहुत परेशान रहते हैं। न जाने कितने माता-पिता हैं, जिनकी आखिरी समय में देखभाल बेटियां ही करती हैं परंतु समाज की यह सोच है कि बेटी पराये घर का धन है। इसलिये उनको अपना वंश चलाने के लिये बेटे की ही जरूरत महसूस होती है। उनका कहना है कि बेटा कैसा भी होगा। बुढ़ापे में उसके सहारे से अपने घर पर तो पड़ रहेंगे। वैसे अब समय बहुत बदल गया है हमें इस सोच से उबरना होगा। सरकार भी बेटे और बेटी में कोई भेद नहीं कर रही है। इसलिये अब लोगों की सोच भी काफी कुछ बदली है।

लेखक- लाखन एस बघेल  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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